Sunday, 8 August 2021

बड़हलगंज मुक्तिपथ पर एक साथ जली एक ही परिवार की पांच चिंताएं, मचा कोहराम

बड़हलगंज मुक्तिपथ पर एक साथ जली पांच चिंताएं मचा कोहराम

शनिवार की रात चौरीचौरा थाना क्षेत्र के फुलवरिया निवासी अपने पूरे परिवार के साथ अपनी कार से छत्तीसगढ़ से अपनी ससुराल अंर्तगत दोहरीघाट मधुबन जा रहे थे।



मधुबन मार्ग पर बेलौली सोनबरसा गांव के समीप सड़क के किनारे गड्ढे में गाड़ी गिरने से मौत हो गई। जिसका अन्तिम संस्कार बड़हलगंज मुक्तिपथ पर हुआ।






गगहा पुलिस ने प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणी करने वाले दो युवकों को किया गिरफ्तार।

सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी का वीडियो वायरल होने पर गगहा पुलिस ने तीन युवकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। वायरल वीडियो गोला क्षेत्र में शनिवार को जुटी भीम आर्मी सेना में शामिल युवकों की बताई जा रही है। भीड में शामिल कुछ युवक प्रधानमंत्री को गाली देते हुए देख लेने की धमकी दे रहे हैं।

किसी ने घटना की वीडियो व्हाट्सएप तथा फेसबुक पर डाल दीया। जिसके बाद पार्टी के आधा दर्जन से अधिक कार्यकर्ता रविवार को गगहा थाने पहुंच कर इसी थाना क्षेत्र के पोखरी गांव निवासी समीर उर्फ छोटू पुत्र राजबली,श्रवण पुत्र सुभाष, नंदन पुत्र रामगति सहित अन्य अज्ञात के खिलाफ शिकायत की। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया ।
थाना प्रभारी अमित दुबे का कहना है कि वायरल वीडियो व शिकायत के आधार पर घटना में शामिल दो लोग पकडे गये हैं। अन्य आरोपी की तलाश जारी है।

Wednesday, 4 August 2021

वैक्सीन क्यों जरूरी है समझें .....


वैक्सीन क्यों जरूरी है समझें .....
अमेरिका के एक डॉक्टर ने एक्सरे की 2 तस्वीरों से समझाया है। वैक्सीन न लेने वाले कोरोना संक्रमित और वैक्सीन लेने वाले मरीज के संक्रमित हुए फेफड़े इसके असर को बताते हैं।
कोरोना संक्रमित होने पर वैक्सीन न लगवाने वालों के फेफड़े की एक्सरे रिपोर्ट में सफेद धब्बे दिखते हैं। यह दिखाता है कि फेफड़ों में वायरस लोड काफी है और इनमें से ऑक्सीजन गुजरने की जगह नहीं है। यही स्थिति सांस लेने में परेशानी की वजह बनती है।
 

Sunday, 1 August 2021

शौच के दौरान खून आना सिर्फ बवासीर नहीं होता, आपको हो सकती हैं ये गंभीर बीमारियां

 बवासीर एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में लोग खुलकर बात नहीं करते हैं। इस बीमारी के बारे में किसी को बताने में लोग शर्म और झिझक महसूस होती है। बवासीर को हेमरॉइड या पाइल्स के नाम से भी जाना जाता है। मल के साथ खून निकलना शर्म नहीं बल्कि चिंता की बात है क्योंकि यह बवासीर या कैंसर कुछ भी हो सकता है। लेकिन आपको सबसे पहले यह जानना चाहिए कि बवासीर क्या है और कैसे होता है?

मलद्वार के पास रक्त वाहिकाओं में सूजन की स्थिति को बवासीर या हेमरॉइड कहते हैं। इन रक्त वाहिकाओं में सूजन के कारण मलत्याग करते समय दर्द और मल के साथ खून निकलता है। इसके अलावा मलद्वार के पास गांठे बनने लगती हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में लोग मस्से कहते हैं और वहां पर खुजली भी होने लगती है।

अधिकतर मामलों में शौच के दौरान खून निकलने को लोग बवासीर की समस्या समझ लेते हैं और फिर शर्म के बारे इसका इलाज नहीं करवाते हैं। आपको बता दें कि बवासीर के अलावा अन्य कई गंभीर बीमारियों के कारण भी मलत्याग के दौरान खून निकल सकता है. इसलिए यह ज़रूरी है कि आप डॉक्टर से अपनी जांच करवाएं और सही बीमारी का पता लगाएं। तो आइए जानें कि बवासीर के अलावा और कौन सी बीमारियों में शौच के दौरान खून निकलता है और दर्द होता है।

1) एनल फिशर : एनल फिशर वास्तव में मलद्वार के पास त्वचा में दरारें होने की समस्या को कहते हैं। इसके कारण मलत्याग करते समय तेज दर्द होता है। यह अमूमन कब्ज और नियमित शौच न करने, कड़ा मल निकलने या बार-बार डायरिया होने के कारण होता है। मलद्वार में दरार आने की वजह से वहां की त्वचा में दर्द होने लगता है जिससे अक्सर लोग यह समझ लेते हैं कि उन्हें हेमरॉइड की समस्या है। इसलिए ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं, डॉक्टर ही आपकी जांच करके यह बता सकते हैं कि आपकी समस्या बवासीर है या सिर्फ एनल फिशर है।

2- क्रोहन रोग : क्रोहन रोग पाचन तंत्र में सूजन संबंधी एक पुरानी बीमारी है जो अक्सर दर्दनाक खूनी दस्त के रूप में प्रकट होती है। इस बीमारी को जी मिचलाना, वजन घटना, पेट दर्द और थकान आदि लक्षणों से पहचाना जाता है। एंडोस्कोपी के जरिए यह पता चल जाता है कि यह क्रोहन रोग है या बवासीर है। क्रोहन रोग में आमतौर पर छोटी आंत का निचला हिस्सा प्रभावित होता है जबकि बवासीर में गुदा या बड़ी आंत का निचला हिस्सा प्रभावित होता है।

3- अल्सरेटिव कोलाइटिस : अल्सरेटिव कोलाइटिस होने पर भी मल में खून आता है, हालांकि यह अमूमन सिर्फ बड़ी आंत को ही प्रभावित करता है। एंडोस्कोपी की मदद से काफी आसानी से यह पता चल जाता है कि आपकी समस्या अल्सरेटिव कोलाइटिस है या बवासीर क्योंकि इसमें होने वाली सूजन बवासीर से काफी हद तक अलग होती है।

4- कोलोरेक्टल कैंसर : बवासीर होना कोलोरेक्टल कैंसर का भी लक्षण हो सकता है। 90 प्रतिशत लोग जिनमें जांच के बाद कोलोरेक्टल कैंसर पाया गया, शुरू में उन्हें यह लगा था कि उन्हें हेमरॉइड है। हालांकि हेमरॉइड में कभी सूजन बढ़ जाती है फिर खत्म हो जाती है और ब्लीडिंग भी हमेशा नहीं होती है जबकि कोलोरेक्टल कैंसर में हमेशा ही मल के दौरान खून बहता रहता है। कोलोरेक्टल कैंसर की जांच करवाने के लिए बायोप्सी या एंडोस्कोपी करवाना ज़रूरी होता है।

5- एनल फिस्टुला : एनल फिस्टुला को आम बोलचाल की भाषा में भगंदर भी कहा जाता है. इसमें मलद्वार के पास मस्से में से पस निकलता रहता है. इसके कारण शौच के दौरान बहुत तेज दर्द होता है और खून निकलता है। डॉक्टर से जांच करवाके आप यह जान सकते हैं कि आपकी समस्या बवासीर है या एनल फिस्टुला है।

6- रेक्टल प्रोलैप्स (Rectal Prolapse) : जब बड़ी आंत प्राकृतिक रूप से अपना जुड़ाव खो देती है और गुदा या मलद्वार के बाहर फैलने लगती है तो इस समस्या को रेक्टल प्रोलैप्स कहते हैं। इसकी वजह से भी मल में खून आता है और मलत्याग करने में दर्द होता है। इसलिए इसे बवासीर समझने की गलती ना करें बल्कि डॉक्टर के पास जाकर अपनी जांच कराएं।

7) प्रोक्टाइटिस (Proctitis) : इस समस्या के कारण मलद्वार की अंदुरुनी परतों में सूजन हो जाती है जिसकी वजह से शौच या मलत्याग के दौरान खून निकलने लगता है और दर्द होता है। डॉक्टर सिग्मोडोस्कोपी की मदद से इस बीमारी का पता लगाते हैं।

इसलिए यह जान लें कि मल में खून आने के सभी मामलों में हेमरॉइड या बवासीर नहीं होता है। इसलिए इसे अनदेखा करना या शर्म के मारे इसका इलाज न करवाना आपके लिए काफी भरी पड़ सकता है। जब भी आपको ऐसे कोई भी लक्षण दिखे तो अपनी मर्जी से कोई दवा लेने के बजाय डॉक्टर के पास जाएं और अपनी बीमारी का सही इलाज करवाएं।

Saturday, 31 July 2021

तो नपुंसकता की असली वजह कुछ और है!

तो नपुंसकता की असली वजह कुछ और है!

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह शरीर आपका है और उसमें कमियों को महसूस भी आप ही को करना होगा. शरीर का हर अंग ज़रूरी होता है और कोई भी अंग शर्मिंदगी का कारण नहीं होता.

हर बीमारी को लेकर जैसे हम खुलकर बात करते हैं वैसे ही अपने गुप्तांगों में किसी समस्या को लेकर भी शर्मिंदगी नहीं सतर्क रहने की ज़रूरत है.

दुनिया भर में लाखों लोग नपुंसकता या नामर्दी से जूझ रहे हैं. कई बार यह हमेशा के लिए नहीं होता है और कुछ लोगों को इसका सामना छोटे वक़्त के लिए भी करना पड़ता है. क्या आपको पता है कि पुरुषों में नपुंसकता के पीछे क्या कारण हैं?

नपुंसकता ज़्यादा उम्र के लोगों के लिए एक सामान्य समस्या है. हालांकि इसकी चपेट में युवा भी आ जाते हैं.

ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस के एक अनुमान के मुताबिक 40 से 70 की उम्र वाले आधे से ज़्यादा लोग कुछ हद तक इससे पीड़ित रहते हैं. एंजेला ग्रेगरी एक थेरपिस्ट हैं और नपुसंकता के मामलों को देखती हैं.

उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, ''मैं पिछले 16 सालों से इन मामलों को देख रही हूं. ख़ासकर पिछले पांच सालों में युवाओं में ऐसी शिकायतें बढ़ी हैं. ज़्यादा उम्र वाले लोगों की नपुंसकता का संबंध डायबिटिज या हृदय रोग से है. युवाओं में ऐसी कोई बीमारी नहीं होती है.  ये सवाल हस्तमैथुन की लत और पॉर्नोग्राफ़ी से जुड़े होते हैं. अपनी पार्टनर के सामने लाचार होने की एक बड़ी वजह ये हो सकती हैं.''

'नपुंसकता एक दिमाग़ी फितूर है'

1998 में यौन क्षमता पर पुरुषों की धारणा को लेकर पहली बार वैश्विक स्तर पर एक सर्वे किया गया. इंटरनेशनल सोसायटी फोर इम्पोटेंस रिसर्च इन एम्सटर्डम में इसकी पड़ताल को पेश किया गया. इसमें ज़्यादातर लोगों ने कहा था कि नपुंसकता उनके दिमाग़ में है.

यह सर्वे 10 देशों में चार हज़ार से ज़्यादा लोगों पर किया गया था. इस स्टडी में सभी देशों के औसत 50 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि नपुंसकता की वजह मनोवैज्ञानिक है. यह सच है कि नामर्दी में तनाव, पार्टनर से समस्या, चिंता और अवसाद के साथ दिमाग़ी फितूर की बड़ी भूमिका होती है.

ब्रिटेन के हेल्थ सिस्टम का कहना है, ''उदाहरण के तौर पर हस्तमैथुन के वक़्त आपको कोई समस्या नहीं होती है. कई बार जब आप बिस्तर से उठते हैं तब भी आप ठीक होते हैं, लेकिन जब सेक्स पार्टनर के पास जाते हैं तो ख़ुद को लाचार पाते हैं.''

अगर ऐसा है तो इसमें मनोवैज्ञानिक कारण होने की आशंका ज़्यादा होती है. किसी भी स्थिति में आपका अंग काम नहीं कर रहा है तब यह शारीरिक समस्या है, लेकिन केवल सेक्स पार्टनर के सामने आप ख़ुद को लाचार पा रहे हैं तो यह समस्या मनोवैज्ञानिक है.

ब्लड प्रेशर, उच्च कोलेस्ट्रोल या डायबिटिज की स्थिति में लिंग की रक्त वाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं.

अमरीका में हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल के ख़ास पब्लिकेशन के अनुसार दिल की बीमारी के कारण भी नपुंसकता बढ़ती है. धमनियों के बंद होने से न केवल हृदय की रक्त वाहिकाएं प्रभावित होती हैं बल्कि पूरे शरीर पर असर पड़ता है.

यहां तक कि लिंग में तनाव नहीं आने की बीमारी से पीड़ित 30 फ़ीसदी लोग हृदय रोग से पीड़ित होते हैं. इसकी वजह हार्मोनल, सर्जरी और चोट भी हो सकती है.




क्या है एंडोमीट्रियोसिस?


क्या है एंडोमीट्रियोसिस?

इस बीमारी में गर्भाशय के आस-पास की कोशिकाएं और ऊतक (टिशू) शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाते हैं जो सामान्य नहीं है.

ये अंडाशय, फ़ैलोपियन ट्यूब, यूरीनरी ब्लैडर में या पेट के अंदर किसी भी जगह पर फैल सकते हैं. यह बीमारी आमतौर पर किशोर और युवा महिलाओं में देखने को मिलती है.

जिन महिलाओं को मेनोपॉज़ हो चुका होता है यानी जिनका मासिक धर्म बंद हो जाता है, उनमें एंडोमीट्रियोसिस होने की आशंका कम होती है.

यह लंबे वक़्त तक रहने वाली बीमारी है जो मरीज को शारीरिक और मानसिक तौर पर तोड़कर रख देती है. इससे जूझ रही महिलाओं के मां बनने की संभावना भी काफ़ी कम हो जाती है.


क्या हैं लक्षण?

अनियमित मासिक धर्म

मासिक धर्म के दौरान असामान्य रूप से ज़्यादा ब्लीडिंग और दर्द

पीरियड्स शुरू होने से कुछ दिनों पहले स्तनों में सूजन और दर्द

यूरिन इंफेक्शन

सेक्स के दौरान और सेक्स के बाद दर्द

पेट के निचले हिस्से में तेज़ दर्द

थकान, चिड़चिड़ापन और कमज़ोरी


यौन जनित बीमारी

 

एड्स

एच.आई.वी./ एड्स क्या है?

एड्स-एच.आई.वी. नामक विषाणु से होता है। संक्रमण के लगभग 12 सप्ताह  बाद ही रक्त की जाँच से ज्ञात होता है कि यह विषाणु शरीर में प्रवेश कर चुका है, ऐसे व्यक्ति को एच.आई.वी. पॉजिटिव कहते हैं। एच.आई.वी. पॉजिटिव व्यक्ति कई वर्षो (6 से 10 वर्ष) तक सामान्य प्रतीत होता है और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है, लेकिन दूसरों को बीमारी फैलाने में सक्षम होता है।

यह विषाणु मुख्यतः शरीर को बाहरी रोगों से सुरक्षा प्रदान करने वाले रक्त में मौजूद टी कोशिकाओं (सेल्स) व मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे उन्हें नष्ट करता रहता है। कुछ वर्षो बाद (6 से 10 वर्ष) यह स्थिति हो जाती है कि शरीर आम रोगों के कीटाणुओं से अपना बचाव नहीं कर पाता और तरह-तरह का संक्रमण (इन्फेक्शन) से ग्रसित होने लगता है, इस अवस्था को एड्स कहते हैं।

एड्स का खतरा किसके लिए

  • एक से अधिक लोगों से यौन संबंध रखने वाला व्यक्ति।
  • वेश्यावृति करने वालों से यौन सम्पर्क रखने वाला व्यक्ति।
  • नशीली दवाईयां इन्जेकशन के द्वारा लेने वाला व्यक्ति।
  • यौन रोगों से पीड़ित व्यक्ति।
  • पिता/माता के एच.आई.वी. संक्रमण के पश्चात पैदा होने वाले बच्चें।
  • बिना जांच किया हुआ रक्त ग्रहण करने वाला व्यक्ति।

एड्स रोग किन कारणो से होता है ?

  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध से।
  • एच.आई.वी. संक्रमित सिरिंज व सूई का दूसरो के द्वारा प्रयोग करने से।
  • एच.आई.वी. संक्रमित मां से शिशु को जन्म से पूर्व, प्रसव के समय या प्रसव के शीघ्र बाद।
  • एच.आई.वी. संक्रमित अंग प्रत्यारोपण से |

एड्स से बचाव

  • जीवन-साथी के अलावा किसी अन्य से यौन संबंध नहीं रखें।
  • यौन संबंध के समय निरोध(कण्डोम) का प्रयोग करें।
  • मादक औषधियों के आदी व्यक्ति के द्वारा उपयोग में ली गई सिरिंज व सूई का प्रयोग न करें।
  • एड्स पीड़ित महिलाएं गर्भधारण न करें, क्योंकि उनसे पैदा होने वाले शिशु को यह रोग लग सकता है।
  • रक्त की आवश्यकता होने पर अनजान व्यक्ति का रक्त न लें, और सुरक्षित रक्त के लिए एच.आई.वी. जांच किया रक्त ही ग्रहण करें।
  • डिस्पोजेबल सिरिन्ज एवं सूई तथा अन्य चिकित्सकीय उपकरणों का 20 मिनट पानी में उबालकर जीवाणुरहित करके ही उपयोग में लावें, तथा दूसरे व्यक्ति का प्रयोग में लिया हुआ ब्लेड/पत्ती काम में ना लावें।

एच.आई.वी. संक्रमण पश्चात लक्षण

एच.आई.वी. पॉजिटिव व्यक्ति में 7 से 10 साल बाद विभिन्न बीमारिंयों के लक्षण पैदा हो जाते हैं जिनमें ये लक्षण प्रमुख रूप से दिखाई पडते हैः

  • गले या बगल में सूजन भरी गिल्टियों का हो जाना।
  • लगातार कई-कई हफ्ते अतिसार घटते जाना।
  • लगातार कई-कई हफ्ते बुखार रहना।
  • हफ्ते खांसी रहना।
  • अकारण वजन घटते जाना।
  • मुँह में घाव हो जाना।
  • त्वचा पर दर्द भरे और खुजली वाले दोदरे/चकते हो जाना।

उपरोक्त सभी लक्षण अन्य सामान्य रोगों,  जिनका इलाज हो सकता है,  के भी हो सकते हैं।

किसी व्यक्ति को देखने से एच.आई.वी. संक्रमण का पता  नहीं लग सकता- जब तक कि रक्त की जाँच न की जायें।

एड्स निम्न तरीकों से नहीं फैलता है:-

  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ सामान्य संबंधो से, जैसे हाथ मिलाने,  एक साथ भोजन करने,  एक ही घड़े का पानी पीने,  एक ही बिस्तर और कपड़ों के प्रयोग, एक ही कमरे अथवा घर में रहने,  एक ही शौचालय, स्नानघर प्रयोग में लेने से, बच्चों के साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है। मच्छरों/खटमलों के काटने से यह रोग नहीं फैलता है।

प्रमुख संदेश:-

  • सुरक्षित यौन संबंध के लिए निरोध का उपयोग करें।
  • हमेशा जीवाणुरहित अथवा डिस्पोजेबल सिरिंज व सूई ही उपयोग में लावें।
  • एच.वाई.वी. संक्रमित महिला गर्भधारण न करें।
  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति को प्यार दें- दुत्कारे नहीं |

एच आई वी व एड्स जानकारी एवं सच्चाई

सुनीता का डर

रमेश का परिवार पेशे से किसान है। उसकी शादी पांच महीने पहले सुनीता से हुई थी। वह अपनी छोटी सी जमीन पर सब्जी उपजा कर जीवन यापन करता था। पर शादी के बाद आमदनी के पैसे कम पड़ने लगे। रमेश ने दसवीं तक की पढ़ाई की थी । मोटर चलाने का काम भी सीख लिया था। सो उसने  शहर में काम ढूंढ़ने का मन बनाया।

एक दिन रमेश खुशी- खुशी घर आया। उसने बताया कि उसे ट्रक चलाने की नौकरी मिल गई है। अब वह रोज शहर चला जाता। खेत का काम सुनीता ने संभाल लिया।
इधर कुछ दिनों से रमेश देर से घर लौटता। कभी-कभी तो सप्ताह लग जाते। उसे ट्रक लेकर  शहर से बाहर जाना पड़ता था। इसी बीच सुनीता गर्भवती हुई। खबर सुनकर रमेश बहुत खुश हुआ। परंतु सुनीता चिंतित थी। उसने एक जानलेवा बीमारी ‘एड्स’ के बारे में सुना। उसने सुना कि इसे आदमी अपने साथ बाहर से लाते हैं। यौन संबंध के दौरान अपनी पत्नियों को संक्रमण दे देते हैं।

एक दिन शहर से लौटने पर रमेश ने सुनीता को चिंतित देखा। पूछने पर एड्स के प्रति अपना डर बताया। रमेश ने उसे विश्वास दिलाया कि डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वह किसी गलत काम में शामिल नहीं रहा है। सुनीता ने उससे पूछा कि एड्स क्या है ?  रमेश ने  उसे विस्तार से एड्स के बारे में बतलाया।

एड्स, एच.आई.वी के कारण होता है। एच.आई.वी एक विषाणु या वायरस है। यह शरीर में बीमारी से लड़ने की ताकत कम कर देता है। इस कारण इंसान कई तरह की बीमारियों से घिर जाता है।

A

एक्वायर्ड

बाहर से प्राप्त किया हुआ

 

I

आई

इम्यूनो

प्रतिरक्षा या बीमारी से बचाने वाली ताकत

 

D

डी

डिफिसियेंसी

कम

 

S

एस

सिंड्रोम

रोग /लक्षणों का समूह

 

 

एच.आई.वी कैसे फैलता है

  1. संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबंध यानी संभोग के कारण। स्त्री और पुरुष दोनों ही अपने साथी को यह संक्रमण दे सकते हैं।
  2. संक्रमित सीरिंजों एवं सूई के प्रयोग से। वे लोग, जो सूइयों का इस्तेमाल ड्रग लेने में करते हैं, उन्हें एड्स का खतरा ज्यादा होता है। यदि किसी सिरिंज और सुइयों का प्रयोग किसी एच.आई.वी मौजूद व्यक्ति में किया जाता है और उसे बिना उबाले या साफ किये जब दूसरे व्यक्ति में किया जाता है तो एच.आई.वी विषाणु उसमें भी प्रवेश कर सकते है।
  3. संक्रमित रक्त या रक्त पदार्थ को शरीर में चढ़ाने से। बिना जांच किये गये खून शरीर में चढ़ाने से एच.आई.वी के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है ।
  4. एच.आई.वी संक्रमित गर्भवती से गर्भ के शिशु को यह संक्रमण हो सकता है। हालांकि इस संभावना को कम किया जा सकता है। एड्स स्त्री, पुरुष, नौजवान, बच्चे किसी को भी हो सकता है। जो लोग जोखिम वाले व्यवहार (ड्रग लेना, एक से ज्यादा औरत से यौन संबंध आदि) में लिप्त हैं, उन्हें एड्स होने की संभावना अधिक होती है।

इनसे एच.आई वी और एड्स नहीं फैलता है

  • साथ रहने यान घूमने-फिरने से
  • हाथ मिलाने से
  • खांसने या छींकने से
  • साथ खाने या पीने से
  • साथ खेलने से
  • मच्छर के काटने से

एच.आई.वी एवं एड्स के लक्षण

एच.आई.वी संक्रमण के बाद एड्स की दशा आने में 6 से 10 वर्ष लग सकते हैं। इसके कुछ प्रमुख लक्षण है :

  • एक महीने में 10 प्रतिशत तक वजन का घटना।
  • एक महीने  से ऊपर लगातार या कुछ समय के अंतराल में दस्त होना।
  • एक महीने  से ऊपर लगातार या कुछ समय के अंतराल पर बुखार का आना।

इसके अलावा लगातार खांसी, मुंह और गले में छाले, ग्रंथियों में सूजन आदि भी लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में खून की जांच अवश्य करानी चाहिए। खून की जांच द्वारा एच.आई.वी का पता लगाया जा सकता है।

एच.आई.वी की जाँच कहाँ कराएं
यह  जांच सभी सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में स्थित स्वैच्छिक जांच एवं परामर्श केन्द्रों में होती है।
यह  सरल जांच मात्र दस रुपये में की जाती है। जांच के साथ मुफ्त सलाह भी दी जाती है।
जांच के परिणाम बिल्कुल गोपनीय रखे जाते हैं।

निम्न लोगों को एच.आई.वी की जाँच अवश्य करानी चाहिए-

  • सूई से ड्रग लेने वाले लोग
  • एक से ज्यादा साथी के साथ यौन संबंध बनाने वाले लोग
  • व्यावसायिक यौनकर्मी
  • जिन्हें यौन संक्रमित बीमारी हो
  • एच.आई.वी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखने वाले
  • एड्स संबंधित बीमारी के लक्षण देखने पर

एच.आई.वी के साथ जी रहे व्यक्ति

  • एकदम स्वस्थ दिख सकते हैं।
  • उन्हें अपने संक्रमण की जानकारी नहीं भी हो सकती है।
  • संक्रमित व्यक्ति लंबे समय तक जी सकते हैं।
  • जोखिम भरे व्यवहार से दूसरों को संक्रमण दे सकते हैं।

एच.आई.वी एवं एड्स से कैसे बचें

  • शादी से पहले यौन संबंध न बनाएं।
  • अपने जीवन-साथी के प्रति वफादार रहें। यानी यौन संबंध सिर्फ  पति-पत्नी के बीच हों।
  • यदि आपको संदेह हो कि आपके साथी को एच.आई.वी या एड्स है तो कंडोम का इस्तेमाल करें।

सिफलिस

सिफलिस क्या है ?

सिफलिस यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) है जो ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से होता है।

लोगों को सिफलिस की बीमारी किस प्रकार लगती है?
सिफलिस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लगती है। यदि एक व्यक्ति उस व्यक्ति के सीधे संपर्क में आता है जिसे सिफलिस की बीमारी है तो उसे सिफलिस लग सकता है।  गर्भवती महिला से यह बीमारी उसके गर्भ में रहने वाले बच्चे को लग सकता है।सिफलिस शौचालय के बैठने के स्थान, दरवाजा के मूठ, तैरने के तालाब, गर्म टब, नहाने के टब, कपडा अदला-बदली करके पहने या खाने के बर्तन की साझेदारी से नहीं लगती।

वयस्कों में इसके क्या चिह्न या लक्षण होते हैं ?

सिफलिस से पीड़ित कई व्यक्तियों में कई वर्षों तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।

प्राथमिक स्तर

सिफलिस में सबसे पहले एक या कई फुंसियां दिखाई पड़ती हैं।  सिफलिस संक्रमण और पहले लक्षण में 10 से 90 (औसतन 21 दिन) दिन लग जाते हैं। यह फुंसी सख्त, गोल, छोटा और बिना दर्द वाला होता है।  यह उस स्थान पर होता है जहां से सिफलिस ने शरीर में प्रवेश किया है।  यह 3 से 6 सप्ताह तक रहता है और बिना उपचार के ठीक हो जाता है तथापि यदि पर्याप्त उपचार नहीं किया जाता तो संक्रमण दूसरे स्तर पर चला जाता है।

दूसरा स्तर

दूसरे स्तर की विशेषता है कि त्वचा में दोदरा (रैश) हो जाते हैं और घाव में झिल्ली पड़ जाती है। दोदरे में सामान्यतः खुजली नहीं होती। हथेली और पांव के तालुओं पर हुआ ददोरा खुरदरा, लाल या लाल भूरे रंग का होता है तथापि दिखने में अन्य प्रकार के दोदरे, शरीर के अन्य भागों में भी पाये जा सकते हैं जो कभी-कभी दूसरी बीमारी में हुए दोदरों की तरह होता है। दोदरों के अतिरिक्त माध्यमिक सिफलिस में बुखार, लसिका ग्रंथि का सूजना, गले की खराश, कहीं-कहीं से बाल का झड़ना, सिरदर्द, वजन कम होना, मांस पेशियों में दर्द और थकावट के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं।

अंतिम स्तर

सिफलिस का अव्यक्त (छुपा) स्तर तब शुरू होता है जब माध्यमिक स्तर के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। सिफलिस के अंतिम स्तर में यह मस्तिष्क, स्नायु, आंख, रक्त वाहिका, जिगर, अस्थि और जोड़ जैसे भीतरी इंद्रियों को खराब कर देते हैं। यह क्षति कई वर्षों के बाद दिखाई पड़ती है। सिफलिस के अंतिम स्तर के लक्षणों में मांस पेशियों के संचालन में समन्वय में कठिनाई, पक्षाघात, सुन्नता, धीरे धीरे आंख की रोशनी जाना और यादाश्त चले जाना (डेमेनशिया) शामिल हैं। ये इतने भयंकर होते हैं कि इससे मृत्यु भी हो सकती है।

एक गर्भवती महिला और उसके बच्चे पर सिफलिस किस प्रकार प्रभाव डालता है ?

यह इस पर निर्भर करता है कि गर्भवती महिला कितने दिनों से इस रोग से प्रभावित हैं। हो सकता है कि महिला मृत प्रसव (बच्चे का मरा हुआ जन्म लेना) करे या जन्म के बाद तुरंत बच्चे की मृत्यु हो जाए। संक्रमित बच्चे में बीमारी के कोई संकेत या लक्षण न भी दिखाई दे सकते हैं। यदि तुरंत उपचार नहीं  किया गया हो तो बच्चे को कुछ ही सप्ताह में गंभीर परिणाम  भुगतना पड़ सकता है। जिस बच्चे का उपचार न किया गया हो उसका विकास रुक सकता है, बीमारी का दौरा पड़ सकता है या फिर उसकी मृत्यु हो सकती है।

सिफलिस और एचआईवी को बीच क्या संबंध है ?

सिफलिस के कारण दर्द भरे जनेन्द्रिय {रति कर्कट (यौन संबंधी एक प्रकार का ज्वर)} में यदि संभोग किया जाए तो एचआईवी संक्रमण होने के अवसर अधिक होते हैं।  सिफलिस के कारण एचआईवी संक्रमण होने का जोखिम 2 से 5 गुना अधिक है।

क्या सिफलिस बार-बार होता है ?

एक बार सिफलिस हो जाने पर यह जरूरी नहीं है कि यह बीमारी फिर न हो। सफलतापूर्वक उपचार के बावजूद व्यक्तियों में इसका संक्रमण फिर से हो सकता है।

सिफलिस की रोकथाम किस प्रकार की जा सकती है ?

इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए। शराब व ऩशे की गोलियां आदि न लेने से भी सिफलिस को रोका जा सकता है क्योंकि ये चीजे जोखिम भरे संभोग की ओर हमें ले जाते हैं।

क्लैमिडिया

क्लैमिडिया क्या है ?
क्लैमिडिया एक सामान्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है जो क्लैमिडिया ट्राकोमोटिस जीवाणु से होता है और यह महिला के प्रजनन इंद्रियों को क्षति पहुंचाता है।

व्यक्तियों को क्लैमिडिया किस प्रकार होता है ?
क्लैमिडिया योनिक, गुदा या मुख मैथुन से संचारित हो सकता है। क्लैमिडिया संक्रमित मां से उसके बच्चे में योनि से जन्म लेते समय लग सकता है। यौनिक सक्रिय व्यक्ति में क्लैमिडिया संक्रमित हो सकता है।

क्लैमिडिया के लक्षण क्या-क्या हैं ?
महिलाओं को ग्रीवा(सर्विक्स) और मूत्र मार्ग में सबसे पहले यह रोग संक्रमित करता है। जिस महिला में यह रोग पाया जाता है उसके योनि से असामान्य रूप से स्राव(डिस्चार्ज) हो सकता है या पेशाब करते समय जलन हो सकती है। जब संक्रमण ग्रीवा(सर्विक्स) से फैलोपियन ट्यूब (अंडाशय से गर्भाशय तक अंडों को ले जाने वाला ट्यूब) तक फैलता है, तो भी किसी-किसी महिला में इसके न तो कोई संकेत पाए जाते हैं और न ही कोई लक्षण दिखाई देते हैं; किसी-किसी को पेट और कमर में दर्द होता है, मिचली आती है, बुखार होता है, संभोग के समय दर्द होता है या मासिक धर्म के बीच में खून निकलता है।
जिन पुरुषों को यह बीमारी होती है उनके लिंग से स्राव हो सकता है या पेशाब करते समय जलन हो सकती है।  पुरुषों को लिंग के रंध्र (ओपनिंग) के आसपास जलन या खुजली हो सकती है।

क्लैमिडिया का यदि उपचार न किया जाए तो उसके परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ?
यदि उपचार न किया गया तो क्लैमिडिया के संक्रमण से गंभीर प्रजनन और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आ सकती है जो कम अवधि से लेकर लंबी अवधि के भी हो सकते हैं। महिलाओं का यदि उपचार न किया गया तो संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन ट्यूब तक फैल सकता है जिससे श्रोणि जलन की बीमारी(पीआईडी) हो सकती है। क्लैमिडिया से संक्रमित महिला में यदि उपचार न किया जाए तो एचआईवी से संक्रमित होने के अवसर 5 गुना अधिक बढ़ जाते हैं जबकि पुरुषों में इसके अनुपात में जटिलताएं बहुत कम हैं।

क्लैमिडिया की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
यौन संचारित बीमारी की रोकथाम का सबसे अच्छा उपाय है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

सुजाक (गानोरिआ)

सुजाक (गानोरिआ) क्या है ?
सुजाक एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है। सुजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है।  इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं।

व्यक्तियों को सुजाक (गानोरिआ) की बीमारी किस प्रकार लगती है ?
सुजाक लिंग, योनि, मुंह या गुदा के संपर्क से फैल सकता है। सुजाक प्रसव के दौरान मां से बच्चे को भी लग सकती है।

सुजाक के संकेत और लक्षण क्या-क्या है ?
किसी भी यौन सक्रिय व्यक्ति में सुजाक की बीमारी हो सकती है। जबकि कई पुरुषों में सुजाक के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते तथा कुछ पुरुषों में संक्रमण के बाद दो से पांच दिनों के भीतर कुछ संकेत या लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कभी कभी लक्षण दिखाई देने में 30 दिन भी लग जाते हैं।  इनके लक्षण हैं- पेशाब करते समय जलन, लिंग से सफेद, पीला या हरा स्राव। कभी-कभी सुजाक वाले व्यक्ति को अंडग्रंथि में दर्द होता है या वह सूज जाता है। महिलाओं में सुजाक के लक्षण काफी कम होते हैं। आरंभ में महिला को पेशाब करते समय दर्द या जलन होती है, योनि से अधिक मात्रा में स्राव निकलता है या मासिक धर्म के बीच योनि से खून निकलता है।

सुजाक गर्भवती महिला और उसके बच्चे को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
यदि गर्भवती महिला को सुजाक है तो बच्चे को भी सुजाक (गानोरिया) हो सकता है क्योंकि बच्चा प्रसव के दौरान जन्म नलिका(बर्थ कैनल) से गुजरता है।  इससे बच्चा अंधा हो सकता है, उसके जोड़ों में संक्रमण हो सकता है या बच्चे को रक्त का ऐसा संक्रमण हो सकता हो जिससे उसके जीवन को खतरा हो सकता है। गर्भवती महिला को जैसे ही पता चले कि उसे सुजाक(गानोरिया) है तो उसका उपचार कराया जाना चाहिए जिससे इस प्रकार की जटिलताओं को कम किया जा सके। गर्भवती महिला को चाहिए कि वे स्वास्थ्य कार्यकर्ता से परामर्श करके सही परीक्षण, जांच और आवश्यक उपचार करवाए।

सुजाक (गानोरिया) की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए  या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के साथ गर्भधारण

क्या गर्भवती महिला को यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) हो सकती है ?

हां, गर्भवती महिलाओं को भी उसी तरह की यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) लग सकती है जैसे कि बिना गर्भ वाली महिलाओं को।

यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) गर्भवती महिला और उसके बच्चे को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

गर्भवती महिलाओं के लिए यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) के परिणाम उसी प्रकार हो सकते हैx जैसे कि बिना गर्भ वाली महिलाओं के। यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से ग्रीवा(सर्विक्स) और अन्य कैंसर हो सकता है, लंबी अवधि के हेपटाइटिस, श्रोणि(पेल्विक) की जलन वाली बीमारी, बंध्यता और अन्य कोई बीमारी हो सकती है।  यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) से पीड़ित कई महिलाओं में इसके कोई संकेत या लक्षण भी नहीं पाये जाते हैं।
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से पीड़ित गर्भवती महिला को समय-पूर्व प्रसव, गर्भाशय में बच्चे को घेरी हुई झिल्ली का समय-पूर्व फटना और प्रसव के बाद मूत्र मार्ग में संक्रमण हो सकता है। यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) बच्चे को जन्म से पूर्व, जन्म के दौरान या जन्म के बाद संक्रमित कर सकती है।  कुछ यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) (जैसे कि सिफलिस) प्लेसेंटा के पार जाकर गर्भाशय (पेट) में ही बच्चे को संक्रमित कर देती है।  अन्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) {जैसे सुजाक (गानोरिया), क्लैमिडिया, हेपटाइटिस बी और योनि त्वचा रोग} प्रसव के दौरान मां से बच्चे को लग सकती है क्योंकि बच्चा जन्म-नलिका से गुजरता है। एचआईवी, प्लेसेंटा  को गर्भकाल के दौरान पार करके जन्म की प्रक्रिया के दौरान बच्चे को संक्रमित कर सकती है। इसके अतिरिक्त अधिकांश अन्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के विपरीत स्तनपान के दौरान भी बच्चा इससे प्रभावित हो सकता है। 
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के अन्य हानिकारक प्रभाव हैं- मृत प्रसव (बच्चा मरा हुआ जन्म ले), बच्चे का वजन काफी कम हो (पांच पाउंड से कम), नेत्र शोथ (कन्जेक्टीवाइटिस)(नेत्र संक्रमण), निमोनिया, नवजात शिशु में रक्त पूर्ति दोष (बच्चे की रक्त धारा में संक्रमण), तंत्रकीय क्षति(मस्तिष्क क्षति या शरीर के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय न होना), अंधापन, बहरापन, गंभीर प्रकार का हेपटाइटिस, मस्तिष्क आवरण बीमारी, लंबी अवधि वाले जिगर की बीमारी और सिरोसिस।

क्या गर्भवती महिला की यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) की जांच की जानी चाहिए ?

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के उपचार में यह कहा जाता है कि गर्भवती महिला जब बच्चे के जन्म से पूर्व पहली जांच के लिए आए तो उसका यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) की निम्नलिखित जांच भी की जानी चाहिएः

  • क्लैमिडिया
  • सुजाक(गानोरिया)
  • हेपेटाइटिस बी
  • हेपेटाइटिस सी
  • एचआईवी
  • सिफलिस

क्या गर्भधारण के दौरान यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) का उपचार किया जा सकता है?

क्लैमिडिया, सुजाक (गानोरिया), सिफलिस, ट्राइकोमोनस और जैविक योनि (बीवी) का उपचार किया जा सकता है तथा एंटीबायोटिक से गर्भधारण के दौरान इसे ठीक भी किया जा सकता है। योनि त्वचा रोग और एचआईवी जैसे वायरल यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) को ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन एंटीवायरल दवाइयों से गर्भावती महिला में इसके लक्षण कम किए जा सकते हैं। जिन महिलाओं में प्रसव के समय योनि त्वचा रोग का घाव  रहता है, उनका सिजेरियन प्रसव (सी-सेक्शन) कराना ठीक होता है ताकि नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके। एचआईवी से पीड़ित कुछ महिलाओं में भी सी-सेक्शन एक विकल्प है। हेपटाइटिस बी वाली महिलाएं गर्भधारण के दौरान हेपेटाइटिस बी का इंजेक्श नहीं ले सकती हैं।

गर्भवती महिला संक्रमण से अपना बचाव किस प्रकार कर सकती है?

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी)

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) क्या है ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) एक सामान्य शब्द है जो गर्भाशय (बच्चेदानी), फैलोपियन ट्यूब (अंडाशय से गर्भाशय तक अंडों को ले जाने वाला ट्यूब) और अन्य प्रजनन इंद्रियों के संक्रमण से संबंधित है।

महिलाओं को श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) कैसे होती है ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) तब होती है जब जीवाणु महिला की जननेद्रिय या ग्रीवा(सर्विक्स) से जननेद्रिय अंग में ऊपर की ओर प्रवेश करती है। बहुत से अलग-अलग अवयवों से श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) होती है किंतु अनेक मामले सुजाक (गानोरिया) और क्लैमिडिया से संबंधित हैं और दोनों ही जीवाणु यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) नहीं हैं। कामेन्द्रियों में लिप्त महिलाओं को अपने प्रजनन वर्ष के दौरान अत्यंत खतरा होता है और जिनकी आयु 25 वर्ष से कम है, उनको 25 वर्ष से अधिक वालों से अधिक खतरा होता है और उनमें श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) विकसित हो सकती है। इसका कारण यह होता है कि बीस वर्ष से कम आयु की लड़कियों और युवतियों का ग्रीवा(सर्विक्स) पूरी तरह परिपक्व नहीं होता है और वे यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के लिए संवेदनशील होती हैं जो कि श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) से संबद्ध होती हैं।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के लक्षण गंभीर से गंभीरतम हो सकते हैं। जब श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी), क्लैमिडिया संबंधी संक्रमण से उत्पन्न होती है तो महिला को बहुत हल्के लक्षणों अथवा न के बराबर लक्षणों का अनुभव हो सकता है किन्तु उसकी प्रजनन शक्ति अंगो की खराबी का गंभीर खतरा होता है। जिन महिलाओं को श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के लक्षण प्रतीत होते हैं उनको सामान्यतः पेट के निचले भाग में दर्द होता है।  अन्य लक्षण हैं- स्राव, जिसमें बदबू आ सकती है, दर्द भरा संभोग, पेशाब करते समय दर्द होना और मासिक धर्म के दौरान अनियमित रक्तस्राव होना।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) को कैसे रोका जा सकता है ?
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

योनि त्वचा रोग (हर्पिस)

योनि त्वचा रोग क्या है ?
योनि त्वचा रोग काम क्रिया से फैलने वाली बीमारी {यौन संचारित बीमारी (एसटीडी)} है जो कि हर्पिस सिम्प्लेक्स नामक वायरस प्रकार - 1 (एच एस वी-1) और टाइप - 2 (एच एस वी-2) से पैदा होता है।

व्यक्तियों को योनि त्वचा रोग कैसे होता है ?
सामान्यतया किसी व्यक्ति को काम क्रिया के दौरान एच एस वी-2 संक्रमण तभी हो सकता है जबकि वह ऐसे व्यक्ति के साथ संपर्क करे जो योनि एचएसवी-2 से पीड़ित है। यह किसी ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो संक्रमण से प्रभावित हो और उसमें कोई दर्द न हो। साथ ही, उसे यह भी मालूम न हो कि वह संक्रमण से पीड़ित है।

योनि त्वचा रोग के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
एचएसवी-2 से पीड़ित अधिकांश व्यक्तियों को अपने संक्रमण की जानकारी ही नहीं होती है। वायरस संप्रेषण को 2 सप्ताह बाद ही पहला प्रकोप होता है और संकेत दिखाई पड़ते हैं। वे विचित्र रूप में दो से चार सप्ताह में ठीक हो जाते हैं लेकिन जननांग या गुदा में या उसके आसपास एक या दो फफोले रह जाते हैं। फफोले फूट जाते हैं और नरम फुंसिया रह जाती हैं जिन्हें ठीक होने में दो से चार सप्ताह लग जाते हैं। ऐसा पहली बार होता है। विचित्र रूप से दूसरा रोग फैलता दिखाई दे सकता है जो कि पहले रोग से कई सप्ताह या महीनों के बाद दिखाई देता है किंतु यह पहले की अपेक्षा कम गंभीर और कम अवधि का होता है। भले ही संक्रमण शरीर में लंबी अवधि के लिए बना रहे किंतु कुछ वर्षों की अवधि के दौरान फैलने वाले रोगों में कमी आ जाती है। अन्य संकेत और लक्षण फ्लू के लक्षणों की तरह होते हैं, जिनमें बुखार और सूजी ग्रंथियां शामिल हैं।

क्या इस त्वचा रोग का इलाज है ?
ऐसा कोई इलाज नहीं है जिससे कि त्वचा रोग का उपचार किया जा सके, किंतु एन्टी वायरस दवाइयों के प्रयोग से दवाई प्रयोग की अवधि के दौरान इसे फैलने से रोका जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन निरोधात्मक उपाय करने से लाक्षणिक त्वचा रोग से साथी को बचाया जा सकता है।

त्वचा रोग की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग के समय कंडोम का प्रयोग करे या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

mai chahu

मैं चाहूं भी तो तुमको पा नही सकता और ये बात किसी को समझा नही सकता  मेरा दिल भी इसी बात को सोच कर रोता है  ऐसी क्या मोहब्बत जो जता नहीं सकता ...